साहित्य
तमिल साहित्य में कंबन ने रामायण, पुगालिंदी ने नलबेंबा, ज्ञानगोंदुर ने कल्लादानर की रचना की। जयागोंदान कुलोत्तुंग प्रथम के राजकवि थे। इनकी रचना कलिंगन्तुपणीं थी। सेक्कीललार कुलोत्तुंग प्रथम के दरबार में रहता था। उसने पेरीयापुराणम की रचना की। वेंकट माधव ने परांतक प्रथम के संरक्षण में ऋग्र्थदीपिका की रचना की। चोल शासक वीर राजेन्द्र को भी महान् तमिल विद्वान् बताया गया है।
गुप्तकाल के बाद सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति गुप्तोत्तर काल में अनेक सामाजिक व आर्थिक परिवर्तन गुप्तोत्तर काल में हुए, जिन्होंने समाज के विभिन्न पक्षों को प्रभावित किया। गुप्त युग से भूमिदानों की जो परंपरा प्रारंभ हुई, वह कालांतर में विकसित होते-होते एक संपूर्ण सामंतीय व्यवस्था के रूप में उभरी। बहुत से सामंतीय पदों का उदय हुआ जो भूमि व सैनिक शक्ति पर आधारित थे, जिसके फलस्वरूप वर्णव्यवस्था के ढाँचे में परिवर्तन हुआ। विभिन जातियों का उद्भव होने लगा था। अपने यात्रा विवरण में ह्वेनसांग ने भारतीयों के रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि का वर्णन किया है। वह लिखता है, इस देश का प्राचीन नाम सिन्धु था परन्तु अब यह इन्दु (हिन्द) कहलाता है- इस देश के लोग जातियों में विभाजित हैं जिनमें ब्राह्मण अपनी पवित्रता और साधुता के लिए विख्यात हैं। इसलिए लोग इस देश को ब्राह्मणों का देश भी कहते हैं। समाज परम्परागत चार वर्णों में ही विभाजित था। समाज में ब्राह्मणों का सम्मान था, उन्हे उपाध्याय, आचार्य आदि कहा जाता था। उनका प्रमुख कार्य अध्ययन-अध्यापन, यजन-याजन ही था। इस युग में सामाजिक अस्थिरता व्याप्त थी। बाह्य आक्रमणों...
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