शैव धर्म
माना जाता है कि कुल 63 नैयनार सन्त हुए। प्रथम नैयनार सन्त अप्पर थे। इनके बाद नानसंबंदर आये। ये तंजौर जिले के सिजली नामक स्थान पर पैदा हुए थे। ये कौन्डिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। ये राजराज एवं राजेन्द्र चोल के समकालीन थे। तिरूमूलर एक महत्त्वपूर्ण सन्त थे। उन्होंने तेवारम और तिरूव्राचलर की रचना थी। सुन्दर मूर्ति एक महत्त्वपूर्ण सन्त थे। इनको शिव के प्रति वैसी ही भक्ति थी जैसे किसी घनिष्ठ मित्र के प्रति होती है। इसलिए उन्हें तम्बिरानतोलन (ईश्वर मित्र) की उपाधि दी गई। नबिअंडारनबि भी एक महत्त्वपूर्ण सन्त थे उन्होंने तिरुमुराई का संकलन किया। तिरुमुराई को पंचम वेद भी कहा जाता है और नबिअंडारनबि को तमिल व्यास कहा जाता है। अधिकतर चोल शासक कट्टर शैव थे। आदित्यचोल ने कावेरी नदी के दोनों किनारे शैव मंदिर स्थापित करवाये थे। राजाराम प्रथम ने वृहदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था और शिवपाद शेखर की उपाधि ली थी। राजाराज प्रथम एवं राजेन्द्र प्रथम के समय इशानशिव और सर्वशिव जैसे शैव मंत्री नियुक्त हुए।













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